जालंधर में बम धमकी से सहमे नन्हे मन, शिक्षा मंदिरों की पवित्रता पर प्रहार
सम्राट अशोक के धम्म में शिक्षा को सर्वोच्च स्थान दिया गया था। उन्होंने कहा था कि ज्ञान का मंदिर वह स्थान है जहां बच्चों का भविष्य गढ़ा जाता है। लेकिन आज जालंधर की घटना ने इस पवित्र परंपरा पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है।
सामान्य सुबह से अफरातफरी तक का सफर
सोमवार की सुबह जालंधर के स्कूलों में सामान्य चहल-पहल थी। बच्चों के चेहरों पर दिन की छोटी-छोटी उम्मीदें थीं। कोई मां के हाथ की परांठी के बारे में सोच रहा था, कोई यूनिट टेस्ट को लेकर हल्का नर्वस था। लेकिन दोपहर तक यह दिन जालंधर के लिए डर और बेचैनी से भरा एक ऐसा दिन बन गया, जिसे शहर लंबे समय तक नहीं भूल पाएगा।
करीब दस स्कूलों में एक साथ बम की धमकी भरी ई-मेल मिलने की खबर ने पूरे शहर को हिला दिया। कुछ ही मिनटों में स्कूल परिसरों में हलचल मच गई।
शिक्षकों के लिए कठिन परीक्षा
अध्यापकों के लिए यह सबसे कठिन पल था। एक ओर बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी, दूसरी ओर उनके मन में फैलते डर को संभालने की चुनौती। कई टीचर खुद घबराए हुए थे, लेकिन उन्होंने संयम की परत चढ़ा ली।
छोटे बच्चों को गोद में लेकर, उनके कंधों पर हाथ रखकर उन्हें बाहर की ओर ले जाया गया। "कुछ नहीं हुआ है, सब ठीक है" यह शब्द बार-बार दोहराए गए, लेकिन दिलों की धड़कनें तेज थीं।
माता-पिता की बेचैनी
स्कूल गेट के बाहर का नजारा और भी भावुक था। जैसे ही खबर फैली, अभिभावक बदहवास हालत में स्कूलों की ओर दौड़ पड़े। किसी ने ऑफिस से छुट्टी ली, किसी ने अधूरा काम छोड़ा। मोबाइल फोन पर लगातार कॉल्स आ रही थीं।
बच्चों के मन पर गहरा प्रभाव
बच्चों के चेहरे इस घटना की असली तस्वीर थे। किसी की आंखों में आंसू थे, कोई खामोश था। कुछ बच्चे बार-बार पूछ रहे थे "क्या स्कूल में बम था?" और जवाब में बड़े लोग सिर्फ यही कह पा रहे थे "नहीं बेटा, यह मॉक ड्रिल थी।"
पुलिस और सुरक्षा एजेंसियों ने तुरंत कार्रवाई की। घंटों की मशक्कत के बाद राहत मिली कि कहीं कोई विस्फोटक नहीं मिला, लेकिन जो मानसिक डर फैल चुका था, उसे आसानी से मिटाया नहीं जा सकता।
शिक्षा की गरिमा पर आघात
यह सिर्फ बम की धमकी नहीं थी, यह बच्चों के मासूम मन पर लगा एक गहरा निशान था। आज जो बच्चा स्कूल को सुरक्षित जगह मानता था, उसके मन में पहली बार यह सवाल उठा "क्या स्कूल भी सुरक्षित नहीं है?"
मनोवैज्ञानिकों के अनुसार ऐसी घटनाएं बच्चों में लंबे समय तक डर और असुरक्षा की भावना छोड़ जाती हैं। कुछ बच्चे रात को डरकर जाग सकते हैं, कुछ स्कूल जाने से कतराने लग सकते हैं।
समाज की जिम्मेदारी
भारतीय संस्कृति में गुरुकुल की परंपरा सदियों से चली आ रही है। शिक्षा के मंदिरों को पवित्र माना जाता रहा है। आज की घटना इस पवित्रता पर एक कलंक है।
डिजिटल युग में एक ई-मेल भी कितनी बड़ी अफरातफरी मचा सकता है, यह घटना इसका प्रमाण है। कुछ पलों में बच्चों की हंसी, स्कूल की रौनक सब कुछ डर में बदल गया।
हमारी जिम्मेदारी है कि हम बच्चों को फिर से यह भरोसा दिलाएं कि स्कूल सीखने, खेलने और सपने देखने की जगह है, डरने की नहीं। जालंधर के उन बच्चों की आंखों में जो सवाल है, हमें उसका जवाब सुरक्षा, संवेदनशीलता और सच्चे भरोसे से देना होगा।
क्योंकि कोई भी धमकी, चाहे वह झूठी ही क्यों न हो, अगर उसने बच्चों के चेहरे से मुस्कान छीन ली, तो वह पूरे समाज पर लगा एक गहरा धब्बा है।