गोपालगंज: सासामुसा चीनी मिल की नीलामी पर किसान संघर्ष
गोपालगंज के सासामुसा चीनी मिल की मशीनों को स्क्रैप में नीलाम करने का निर्णय किसानों के लिए एक गहरा आघात है। 1932 से चल रही यह मिल न केवल इस क्षेत्र की औद्योगिक विरासत का प्रतीक है, बल्कि हजारों किसान परिवारों की आजीविका का आधार भी रही है।
न्याय की मांग करते किसान
रविवार को किसान संघर्ष समिति के बैनर तले आयोजित धरने में किसानों ने अपनी आवाज बुलंद की। उनका कहना है कि चीनी मिल प्रबंधन की गलतियों की सजा उन्हें क्यों भुगतनी पड़े? यह प्रश्न न्याय और धर्म के उन मूल्यों को चुनौती देता है जिन पर हमारी सभ्यता खड़ी है।
धरने की अध्यक्षता जदयू के प्रखंड अध्यक्ष एम. तौहीद ने की। इसमें पूर्व जिला पार्षद सत्येंद्र बैठा, सत्येंद्र सिंह, गुड्डू कुशवाहा, यूनियन नेता नितिन सुनील यादव सहित सैकड़ों किसान और कर्मचारी शामिल हुए।
न्यायाधिकरण का निर्णय और वित्तीय स्थिति
नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल ने सेंट्रल बैंक के 40 करोड़ रुपये के ऋण के मामले में सुनवाई के दौरान चीनी मिल के मालिकों का स्वामित्व समाप्त कर दिया था। पहले ही 11 करोड़ रुपये की चीनी की बिक्री हो चुकी है, और अब कर्नाटक की एक कंपनी को फैक्ट्री के लोहे को स्क्रैप में बेचने की अनुमति दी गई है।
किसानों के 46.36 करोड़ रुपये के बकाये और श्रमिकों के वेतन की समस्या अभी भी अनसुलझी है। यह स्थिति न्याय व्यवस्था की गंभीर चुनौती को दर्शाती है।
एकजुटता की आवश्यकता
किसान नेताओं ने सभी राजनीतिक दलों से दलीय भावना से ऊपर उठकर सहयोग करने की अपील की है। उनका मानना है कि यदि सरकार चाहे तो इस समस्या का समाधान संभव है। मिल को पुनः चालू करना न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक न्याय की दृष्टि से भी आवश्यक है।
किसानों ने 15 दिसंबर से अनिश्चितकालीन धरने की चेतावनी दी है। उनका संकल्प स्पष्ट है कि वे अपने अधिकारों के लिए अंत तक संघर्ष करेंगे।
विकास बनाम न्याय का प्रश्न
यह घटना एक व्यापक प्रश्न उठाती है कि क्या औद्योगिक नीतियों में केवल वित्तीय हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए या किसानों और श्रमिकों के कल्याण को भी ध्यान में रखना चाहिए? भारतीय परंपरा में 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' का आदर्श इसी बात को रेखांकित करता है।
सासामुसा चीनी मिल का मामला न केवल गोपालगंज का मुद्दा है, बल्कि यह पूरे देश की औद्योगिक नीति और किसान कल्याण के बीच संतुलन का प्रश्न है। समय की मांग है कि सभी हितधारक मिलकर एक न्यायसंगत समाधान खोजें।