जालंधर: एक ई-मेल से सहमे नन्हे फरिश्ते, शिक्षा व्यवस्था की सुरक्षा पर उठे गंभीर सवाल
जालंधर में सोमवार की सुबह सामान्य थी। स्कूलों में बच्चों की चहल-पहल, बसों में मासूम चेहरे और कंधों पर लटकते बैग। कोई टिफिन की परांठी के बारे में सोच रहा था, कोई यूनिट टेस्ट को लेकर नर्वस था। लेकिन किसी को पता नहीं था कि यह दिन जालंधर के लिए डर और बेचैनी से भरा एक ऐसा दिन बन जाएगा, जिसे शहर लंबे समय तक भूल नहीं पाएगा।
दस स्कूलों में एक साथ बम की धमकी
करीब दस अलग-अलग स्कूलों में एक साथ बम की धमकी भरी ई-मेल मिलने की खबर ने पूरे शहर को हिला दिया। कुछ ही मिनटों में स्कूल परिसरों में हलचल मच गई। जो बच्चे कक्षा में बैठे थे, उनकी आंखें अचानक बदलते माहौल को समझने की कोशिश कर रही थीं। कहीं बच्चों से कहा गया कि यह मॉक ड्रिल है, कहीं स्कूल स्टाफ तेजी से एक-दूसरे से बात करता दिखा।
कई स्कूलों में बच्चे खाना खा रहे थे। किसी ने टिफिन खोला ही था, किसी के हाथ में चम्मच था। कुछ बच्चे परीक्षा हॉल में पेपर हल कर रहे थे, जहां अचानक दहशत का साया फैल गया। बच्चों के चेहरे पर बस एक ही सवाल था: मैम, क्या हुआ?
शिक्षकों के लिए कठिन परीक्षा की घड़ी
अध्यापकों के लिए यह सबसे कठिन पल था। एक ओर बच्चों की सुरक्षा की जिम्मेदारी, दूसरी ओर उनके मन में फैलते डर को संभालने की चुनौती। कई शिक्षक खुद घबराए हुए थे, लेकिन उन्होंने अपने चेहरे पर संयम की परत चढ़ा ली। छोटे बच्चों को गोद में लेकर, उनके कंधों पर हाथ रखकर उन्हें सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया।
कुछ नहीं हुआ है, सब ठीक है, ये शब्द बच्चों के कानों में बार-बार दोहराए गए, लेकिन दिलों की धड़कनें तेज थीं। स्कूल गेट के बाहर का नजारा और भी भावुक था। जैसे ही खबर फैली, अभिभावक बदहवास हालत में स्कूलों की ओर दौड़ पड़े।
मासूम चेहरों पर गहरा प्रभाव
बच्चों के चेहरे इस घटना की असली तस्वीर थे। किसी की आंखों में आंसू थे, कोई खामोश था, कोई मां का हाथ पकड़कर चुपचाप खड़ा था। कुछ बच्चे बार-बार पूछ रहे थे क्या स्कूल में बम था? और जवाब में बड़े लोग सिर्फ यही कह पा रहे थे नहीं बेटा, यह मॉक ड्रिल थी।
पुलिस और सुरक्षा एजैंसियां तुरंत कार्रवाई में आईं। स्कूल परिसरों को खाली कराया गया, बम निरोधक दस्ते ने जांच शुरू की। घंटों की जांच के बाद राहत मिली कि कहीं कोई विस्फोटक नहीं मिला, लेकिन जो मानसिक आघात पहुंचा था, उसे इतनी आसानी से मिटाया नहीं जा सकता।
शिक्षा व्यवस्था की सुरक्षा पर गंभीर सवाल
यह सिर्फ बम की धमकी नहीं थी, यह बच्चों के मासूम मन पर लगा एक गहरा घाव था। आज जो बच्चा स्कूल को सुरक्षित जगह मानता था, उसके मन में पहली बार यह सवाल उठा: क्या स्कूल भी सुरक्षित नहीं है?
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसी घटनाएं बच्चों में लंबे समय तक डर और असुरक्षा की भावना छोड़ जाती हैं। कुछ बच्चे रात को डरकर जाग सकते हैं, कुछ स्कूल जाने से कतराने लग सकते हैं।
समाज की जिम्मेदारी और भविष्य की चुनौती
इस घटना ने समाज को एक कड़वा सच दिखाया है। डिजिटल युग में एक ई-मेल कितनी बड़ी अफरा-तफरी मचा सकता है। कुछ पलों में बच्चों की हंसी, स्कूल की रौनक, सब कुछ डर में बदल गया।
जालंधर की यह घटना हमारे लिए एक चेतावनी है। यह बताती है कि बच्चों की सुरक्षा सिर्फ स्कूल की चारदीवारी तक सीमित नहीं हो सकती। सबसे अहम बात यह है कि हमें बच्चों के मन को भी संभालना होगा। उन्हें फिर से यह भरोसा दिलाना होगा कि स्कूल सीखने, खेलने और सपने देखने की जगह है, डरने की नहीं।
हमारी जिम्मेदारी है कि हम उन मासूम सवालों का जवाब सुरक्षा, संवेदनशीलता और सच्चे भरोसे से दें। क्योंकि कोई भी धमकी, चाहे वह झूठी ही हो, अगर उसने बच्चों के चेहरे से मुस्कान छीन ली, तो वह पूरे समाज पर लगा एक गहरा कलंक है।