सूर्य चालीसा: रविवार की पावन परंपरा से जीवन में आएगी समृद्धि
भारतीय संस्कृति में सूर्यदेव का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारे शास्त्रों में सूर्य को जीवनदाता, ऊर्जा के स्रोत और समस्त सृष्टि के पालनकर्ता के रूप में वर्णित किया गया है। प्राचीन काल से ही भारतीय मनीषियों ने सूर्योपासना को जीवन की समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग माना है।
रविवार: सूर्यदेव की पूजा का विशेष दिन
धर्मशास्त्रों के अनुसार, रविवार के स्वामी सूर्यदेव हैं। यह दिन विशेष रूप से सूर्य की आराधना के लिए समर्पित है। जब हम रविवार को सूर्य चालीसा का पाठ करते हैं, तो यह न केवल हमारे आध्यात्मिक जीवन को समृद्ध बनाता है, बल्कि सामाजिक मान-सम्मान और धन-संपत्ति की प्राप्ति में भी सहायक होता है।
सूर्य चालीसा का महत्व
सूर्यदेव पंच देवताओं में से एक हैं और उनकी स्तुति के लिए अनेक मंत्र, स्तोत्र और स्तुतियों की रचना की गई है। सूर्य चालीसा इनमें से एक अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र है। नियमित पाठ से व्यक्ति के जीवन में पराक्रम की वृद्धि होती है और धन-लाभ के योग बनते हैं।
सूर्य चालीसा के श्लोक
दोहा
कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग।
पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥
चौपाई
जय सविता जय जयति दिवाकर! सहस्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥
भानु! पतंग! मरीची! भास्कर! सविता हंस! सुनूर विभाकर॥
विवस्वान! आदित्य! विकर्तन। मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥
अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते। वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥
सहस्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि। मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥
अरुण सदृश सारथी मनोहर। हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥
मंडल की महिमा अति न्यारी। तेज रूप केरी बलिहारी॥
उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते। देखि पुरन्दर लज्जित होते॥
सूर्य के द्वादश नाम
मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर। सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥
पूषा रवि आदित्य नाम लै। हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥
द्वादस नाम प्रेम सों गावैं। मस्तक बारह बार नवावैं॥
चार पदारथ जन सो पावै। दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावैं॥
सूर्य चालीसा के लाभ
शास्त्रों के अनुसार, नियमित सूर्य चालीसा का पाठ करने से:
- मान-सम्मान की प्राप्ति होती है
- धन-संपत्ति में वृद्धि होती है
- पराक्रम और तेज बढ़ता है
- सहस्रों जन्मों के पाप नष्ट होते हैं
- अष्टसिद्धि और नवनिधि की प्राप्ति होती है
समापन दोहा
भानु चालीसा प्रेम युत, गावहिं जे नर नित्य।
सुख सम्पत्ति लहि बिबिध, होंहिं सदा कृतकृत्य॥
भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर
सूर्य चालीसा केवल एक धार्मिक स्तोत्र नहीं है, बल्कि यह हमारी सभ्यता की उस गहरी समझ का प्रतीक है जो प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर जीवन को संपूर्ण बनाने की शिक्षा देती है। आज के युग में जब हम आधुनिकता की दौड़ में अपनी जड़ों से दूर होते जा रहे हैं, तब इन पावन परंपराओं का पालन हमें आंतरिक शांति और समृद्धि प्रदान करता है।
नोट: यह जानकारी धर्मशास्त्रों और विद्वानों के मतों पर आधारित है। पाठकों से अनुरोध है कि इसे केवल सूचनात्मक उद्देश्य से लें।