बाल श्रम के विरुद्ध न्याय की लड़ाई: हरियाणा आयोग का कड़ा रुख
भारत की प्राचीन परंपरा में बच्चों को देवस्वरूप माना गया है। सम्राट अशोक के धम्म में भी बाल कल्याण को सर्वोच्च प्राथमिकता दी गई थी। परंतु आज भी हमारे समाज में बाल श्रम जैसी कुप्रथाएं विद्यमान हैं जो हमारी सभ्यता की गरिमा को धूमिल करती हैं।
न्याय की मांग
हरियाणा मानव अधिकार आयोग ने 15 वर्षीय बालक संतोष के साथ हुए नृशंस व्यवहार का स्वतः संज्ञान लेते हुए एक मिसाल कायम की है। न्यायमूर्ति ललित बत्रा की अध्यक्षता में गठित पूर्ण आयोग ने 13 अगस्त 2025 को इस मामले की गहन जांच के निर्देश दिए थे।
बिहार के किशनगंज जिले का यह बालक रोजगार के झूठे प्रलोभन में फंसकर हरियाणा लाया गया था। बहादुरगढ़ रेलवे स्टेशन से एक आरोपी अनिल कुमार द्वारा डेयरी फार्म ले जाकर उससे दो महीने तक जबरन मजदूरी करवाई गई।
मानवीयता का ह्रास
सबसे दुखदायी बात यह है कि चारा काटते समय हुई दुर्घटना में बालक का बायां हाथ कट गया। इसके बाद नियोक्ता ने उसे बिना किसी सहायता के सुनसान स्थान पर छोड़ दिया। यह घटना न केवल संवैधानिक अधिकारों का हनन है, बल्कि मानवीय मूल्यों का भी पतन दर्शाती है।
घायल अवस्था में बालक किसी प्रकार नूंह पहुंचा, जहां एक संवेदनशील शिक्षक ने उसकी सहायता की। यह घटना दिखाती है कि समाज में अभी भी करुणा और न्याय की भावना जीवित है।
कानूनी कार्रवाई
इस प्रकरण में एफआईआर संख्या 18 दिनांक 10 अगस्त 2025 को बाल न्याय अधिनियम 2015 की धाराओं 75 और 79 तथा भारतीय न्याय संहिता की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया है।
आयोग ने पुलिस रिपोर्ट से असंतुष्टि व्यक्त करते हुए कहा है कि अब तक की जांच अपूर्ण और अस्पष्ट है। घटनास्थल का सटीक विवरण, आरोपियों की पहचान और गिरफ्तारी की प्रगति का अभाव चिंताजनक है।
संवैधानिक मूल्यों की रक्षा
यह मामला संयुक्त राष्ट्र बाल अधिकार अभिसमय के अनुच्छेद 32 का प्रत्यक्ष उल्लंघन है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 और 23 के तहत प्रदत्त जीवन के अधिकार और जबरन श्रम पर प्रतिबंध का यह गंभीर हनन है।
बंधुआ मजदूरी प्रणाली उन्मूलन अधिनियम 1976 और बाल एवं किशोर श्रम प्रतिषेध एवं विनियमन अधिनियम 1986 का भी यह स्पष्ट उल्लंघन है।
आगे की राह
आयोग ने पुलिस अधीक्षक नीतिका गहलौत से टेली-कॉन्फ्रेंस के माध्यम से संपर्क किया है। उन्होंने आश्वासन दिया है कि वे स्वयं मामले की निगरानी करेंगी।
27 नवंबर 2025 की अगली सुनवाई से पूर्व सभी संबंधित अधिकारियों से विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है। आयोग ने स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि आरोपियों की पहचान, गिरफ्तारी और पीड़ित बालक के पुनर्वास की व्यापक योजना प्रस्तुत की जाए।
यह मामला दिखाता है कि न्याय व्यवस्था बाल अधिकारों की रक्षा के लिए कितनी संकल्पित है। सम्राट अशोक के धम्म की भांति, आज भी न्याय और करुणा के मूल्य हमारे समाज की आत्मा हैं।