हनुमान अष्टमी: पावन भजनों से भरें अपना हृदय
12 दिसंबर, शुक्रवार को मनाई जा रही हनुमान अष्टमी के पावन अवसर पर, भारतीय संस्कृति की महान परंपरा के अनुसार बजरंगबली के दिव्य भजनों से दिन की शुरुआत करना अत्यंत शुभ माना जाता है।
पौष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाने वाला यह पर्व हमारी सनातन परंपरा का अमूल्य रत्न है। विशेषकर मध्य प्रदेश के उज्जैन क्षेत्र में इसकी विशेष मान्यता है, जो हमारी सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है।
आध्यात्मिक चेतना जगाने वाले भजन
हनुमानजी के मधुर भजन न केवल मन को शांति प्रदान करते हैं, बल्कि आत्मा को उच्च आध्यात्मिक स्तर पर ले जाते हैं। ये भजन हमारी भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ों से जुड़े हुए हैं।
"जय हो जय हो तुम्हारी बजरंग बली"
यह भजन त्रेतायुग से कलयुग तक हनुमानजी की निरंतर उपस्थिति का वर्णन करता है। इसमें उनके बचपन की लीलाओं से लेकर लंका दहन तक के वीरतापूर्ण कार्यों का चित्रण है।
"मंगल मूर्ति राम दुलारे"
इस भजन में हनुमानजी की कृपा और करुणा का अद्भुत वर्णन है। "तीनो लोक तेरा उजियारा, दुखियों का तूने काज संवारा" जैसी पंक्तियां उनकी सर्वव्यापी उपस्थिति को दर्शाती हैं।
"श्री राम जानकी बैठे हैं मेरे सीने में"
यह भजन हनुमानजी की अटूट भक्ति का प्रतीक है। इसमें सच्ची भक्ति का सार छुपा है, जो भौतिक वस्तुओं से कहीं ऊपर आध्यात्मिक आनंद की बात करता है।
कलयुग में प्रासंगिकता
"कलयुग में सिद्ध हो देव तुम्ही" भजन आज के समय में विशेष महत्व रखता है। यह दर्शाता है कि कैसे हनुमानजी आज भी हमारे कष्टों का निवारण करते हैं।
"माँ अंजनी के लाल" और "खुश होंगे हनुमान" जैसे भजन हमारी मातृभूमि की सांस्कृतिक समृद्धता को दर्शाते हैं। ये भजन न केवल व्यक्तिगत शांति प्रदान करते हैं, बल्कि समाज में एकता और भाईचारे की भावना भी जगाते हैं।
सांस्कृतिक एकता का प्रतीक
हनुमान अष्टमी का यह पर्व हमारी भारतीय संस्कृति की उस महान परंपरा का प्रतिनिधित्व करता है, जो विविधता में एकता का संदेश देती है। धर्म, जाति और क्षेत्र की सीमाओं से ऊपर उठकर यह पर्व सभी भारतीयों को एक सूत्र में बांधता है।
इस पावन दिन पर हनुमानजी के इन दिव्य भजनों को सुनकर हम न केवल आध्यात्मिक लाभ प्राप्त करते हैं, बल्कि अपनी सांस्कृतिक जड़ों से भी जुड़ते हैं।